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ए॒वा नो॑ अग्ने अ॒मृते॑षु पूर्व्य॒ धीष्पी॑पाय बृ॒हद्दि॑वेषु॒ मानु॑षा। दुहा॑ना धे॒नुर्वृ॒जने॑षु का॒रवे॒ त्मना॑ श॒तिनं॑ पुरु॒रूप॑मि॒षणि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā no agne amṛteṣu pūrvya dhīṣ pīpāya bṛhaddiveṣu mānuṣā | duhānā dhenur vṛjaneṣu kārave tmanā śatinam pururūpam iṣaṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒मृते॑षु। पू॒र्व्य॒। धीः। पी॒पा॒य॒। बृ॒हत्ऽदि॑वेषु। मानु॑षा। दुहा॑ना। धे॒नुः। वृ॒जने॑षु। का॒रवे॑। त्मना॑। श॒तिन॑म्। पु॒रु॒ऽरूप॑म्। इ॒षणि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:2» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूर्व्य) पूर्वज विद्वानों ने विद्या पढ़ाकर किये (अग्ने) विद्वान् ! आप (त्मना) अपने से जो (बृहद्दिवेषु) बहुत प्रकाश जिनमें विद्यमान उन (वृजनेषु) बलयुक्त (अमृतेषु) विनाश और उत्पत्तिरहित जीवों में (मानुषा) मनुष्य सम्बन्धी सुख और (इषणि) इच्छा के निमित्त (शतिनम्) अपरिमित असंख्य (पुरुरूपम्) जिसमें बहुत रूप विद्यमान उस व्यवहार को (दुहाना) दोहती पूरा करती हुई (धेनुः) वाणी ही है। उन सबकी प्राप्ति कराते हुए (एव) ही (नः) हम लोगों के लिये और (कारवे) करनेवाले के लिये (धीः) बुद्धि और कर्मों की (पीपाय) वृद्धि कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - विज्ञान चाहनेवाले जनों को शिष्ट महात्मा जनों से पाई हुई बुद्धि को प्राप्त होकर बहुत प्रकार के पदार्थविज्ञान से मनुष्य जन्म के धर्म अर्थ काम और मोक्षरूपी फलों को प्राप्त होना चाहिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे पूर्व्याऽग्ने त्वं त्मना या बृहद्दिवेषु वृजनेष्वमृतेषु मानुषेषणि शतिनं पुरुरूपं च दुहाना धेनुरस्ति तान् प्रापयन्नेव नोऽस्मभ्यं कारवे च धीः पीपाय ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एव) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) विद्वन् (अमृतेषु) नाशोत्पत्तिरहितेषु जीवेषु (पूर्व्यः) पूर्वैर्विद्वद्भिः कृतो विद्वान् तत्सम्बुद्धौ (धीः) प्रज्ञा कर्माणि वा (पीपाय) वर्द्धय (बृहद्दिवेषु) बृहती द्यौः प्रकाशो येषु तेषु (मानुषा) मनुष्यसम्बन्धीनि सुखानि (दुहाना) प्रपूरयन्ती (धेनुः) वागेव (वृजनेषु) बलयुक्तेषु (कारवे) कर्त्रे (त्मना) आत्मना (शतिनम्) अपरिमितसङ्ख्यम् (पुरुरूपम्) बहूनि रूपाणि यस्य तम् (इषणि) एषणायाम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिज्ञासुभिराप्तप्राप्तां प्रज्ञां लब्ध्वा बहुविधपदार्थविज्ञानेन मनुष्यजन्मनो धर्मार्थकाममोक्षरूपाणि फलानि प्राप्तव्यानि ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जिज्ञासू लोकांनी आप्त महात्मा लोकांकडून प्राप्त झालेल्या बुद्धीने अनेक प्रकारच्या पदार्थविज्ञानाने मनुष्य जन्माचे धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूपी फळ प्राप्त करावे. ॥ ९ ॥